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Saturday, July 24, 2010

मैं लिख नहीं सकता |

अपनी भाषा में कुछ लिखे अरसों बीते|अब  लिखता हूँ तो अक्षर सीधे नहीं आते,रेखाएं टेढ़ी मेढ़ी, मात्रा गुल|वाक्यों से वाकये का पता नहीं चलता|लेखनी लेखक के खिलाफ मोर्चा खोल चुकी है|लेख का शीर्षक लेखनी के जीत का सूचक है|
पर कभी की माशूक सी, कलम अब भी, कभी कभी दिल की सुन लेती है |कभी कभी लिख लेने देती है कुछ पंक्तियाँ|
ब्लॉग का यह सत्र और आगामी कुछ एक, लेखनी की इजाज़त से अर्ज़ हैं...

|। भारत बंद ||

आज भारत बंद है |
न सूरज उगा,
न चाँद ढला,
रात के बाद न सुबह हुई|
क्यूँ के, आज भारत बंद है|

पक्ष किसी की नहीं सुनता |
कल दाल के दाम बढ़ा दिये!
विपक्ष ने भी सर पर अपने
(और कइयों के)
सादे-काले कफन चढ़ा लिए|
बात मर्यादा की है |
दाल की नहीं ,
टमाटर की नहीं ,
रातों रात कम ज्यादा की है |
दो रुपये किलो बढ़ गए,
अगर खरीदो थोक,
बंद न होता आज जो भइये,
कौन यह सकता रोक?

गर दो का सिक्का
सीधे किसान को जाता,
धूप में सिंके उसके,
अभिमान को भाता|
पर यह सिक्का तो भाभी,
काफी
घूम घूम कर जाएगा-
अंततः किसान ये शायद,
एक चवन्नी पाएगा|

इसीलिए ,
विपक्ष उतारू है |
सड़क पर सदस्य सभी ,
चलें हैं कपड़े उतार,
नर नारे मार रहे ,
नारियां करतीं हाहाकार|

जश्न के माहौल में ,
प्रश्न खो से गए हैं |
पर जनता को न कोई आनंद है,
सो,
आज भारत बंद है!


इति|

2 comments:

  1. कविता के प्रथम छंद के अंतिम वाक्य में "बंद" शब्द की कमी है।
    इस कमी को नज़रअंदाज़ करने के बाद कह सकता हूँ, "आप लिख सकते हैं!"
    This is like a proof by contradiction: Let's assume "I can't write"; Let me write a nice poem; It seems my assumption was wrong!
    YOOOOOOOOOOO!!!!!!!!!!!!!!!!

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  2. आपकी ज़र्रानवाजी का शुक्रिया|गलती सुधार दी गयी है|

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